Monday, April 18, 2011

कशिश.....


इंतज़ार  रुलाता  है , तकरार  भी  रुलाती  है,
चाहते  तो  सिर्फ  प्यार  हैं ,
मगर  तेरी  हर  बात  हंसती  है ,  फिर  रुलाती  है ...
दूर  जाना  चाहें   तो  जायें   कैसे ?
तेरी  हर  बात  हमे   वापिस  खिंच   के  ले  आती  है ...

वफ़ा.....

 
वफ़ा  की  उम्मीद  कैसी  हमसे ? तुमने  जब  दिल  दिया  ही  नहीं ,
जान  कर  इस  दिल  की  बातें , कुछ  जब  तुमने  कहा   ही  नहीं ..
खिलौना  बना  कर  कुछ  देर  खेला  इस  दिल  से ,
अब  जाते - जाते   कह  गए , हम  ही  उस  दिल  के  काबिल  नहीं !!....